व्यक्तित्व (PERSONALITY)
व्यक्तित्व (PERSONALITY)
व्यक्तित्व का अंग्रेजी
रूपान्तरण Personality'
है जो Latin भाषा के शब्द Persona से बना है, जिसका
अर्थ नकाब (Mask) होता है (नाटक करते समय नायक जिसे पहनते हैं) ।
शाब्दिक अर्थ को ध्यान में रखते हुए व्यक्तित्व को वेश-भूषा अथवा दिखावे के आधार
पर परिभाषित किया गया । जिस व्यक्ति का पहनावा अच्छा होता था। उसका व्यक्तित्व
अच्छा तथा जिसका साधारण होता था उसका व्यक्तित्व अच्छा नहीं माना जाता था। इस
विचार धारा को अमान्य कर दिया गया । धीरे-धीरे व्यक्तित्व की 49 परिभाषाएँ प्रस्तुत की गईं। 50 वीं परिभाषा सभी परिभाषाओं का विश्लेषण करने के बाद
आलपोर्ट (All Port-1937)
ने प्रस्तुत की व्यक्तित्व
व्यक्ति के भीतर (अन्दर) उन मनोशारीरिक तंत्रों का गतिशील या गत्यात्मक संगठन है
जो वातावरण में उसके अपूर्व समायोजन को निर्धारित करते हैं।
'प्राय "व्यक्तित्व का तात्पर्य व्यवहार के उस विशेष पैटर्न से जिसमें
चिंतन एवं संवेग भी सम्मिलित हैं) से होता है जो प्रत्येक व्यक्ति की जिंदगी की
परिस्थितियों के साथ होने वाले समायोजन का निर्धारण करता है। इस परिभाषा से स्पष्ट
होता है कि
1. व्यक्तित्व में शारारिक एवं मानसिक दोनों ही तत्त्वों
का। मिश्रण होता है जैसे ग्रन्थीय क्रियातंत्रीय क्रिया (neural processes)
तथा ज्ञानशक्ति (Intellect) संवेग आदत चरित्र आदि।
2. व्यक्तित्व के शारीरिक एवं मानसिक गुणों के संगठन में
परिवर्तन भी होता है । जैसे नौकरी प्राप्त करने से पूर्व एक बालक/व्यक्ति
कर्तव्यनिष्ठ, समयनिष्ठ एवं ईमानदार हो सकता है। नौकरी प्राप्त कर
लेने के बाद संभव है कि। उसकी ईमानदारी पहले जैसी न रह जाए अर्थात व्यक्तित्व का
स्वरूप गत्यात्मक संगठन वाला होता है।
3. व्यक्तित्व वातावरण में अपूर्व समायोजन का निर्धारण करता
है। प्रत्येक व्यक्ति सामान्य परिस्थितियों एवं घटनाओं पर अलग-अलग ढंग से समायोजित
होता है। निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता
है कि व्यक्तित्व में भिन्न-भिन्न शीलगुणों का एक ऐसा गत्यात्मक संगठन होता है जिसके
कारण व्यक्ति का व्यवहार है तथा विचार किसी भी वातावरण में अपने ढंग का होता है
4 शिक्षा
अपने सम्पूर्ण रूप में बालक के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का प्रयोजन रखती है।
मनोवैज्ञानिक भाषा में कहा जा सकता है कि व्यक्ति स्वंय में जो कुछ भी है वही उसका
'व्यक्तित्व है।
व्यक्तित्व की
कुछ आधुनिक परिभाषाएँ दृष्टव्य है
गिलफोर्ड -व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है।
वुडवर्थ –व्यक्तित्व के व्यवहार की एक समग्र विशेषता ही व्यक्तित्व है।
मार्टन-व्यक्तित्व
व्यक्ति के जन्मजात तथा अर्जित स्वभाव, मूल
प्रवृत्तियों, भावनाओं तथा इच्छाओं आदि का समुदाय
है।
बोरिंग के अनुसार-” वातावरण के साथ
सामान्य एवं स्थाई समायोजन ही व्यक्तित्व हैं
मन के अनुसार- “ व्यक्तित्व एक
व्यक्ति के व्यवहार के तरीकों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं, योग्यताओं तथा
अभिरुचियों का विशिष्टतम संगठन है”
इस प्रकार हम
निष्कर्ष रूप में कह सकते है, कि व्यक्तित्व
एक व्यक्ति के समस्त मानसिक एवं शारीरिक गुणों का ऐसा गतिशील संगठन है, जो वातावरण के
साथ उस व्यक्ति का समायोजन निर्धारित करता है।
व्यक्तित्व की
प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के सम्बन्ध में अनेक
सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है।
व्यक्तित्व का प्रकार
व्यक्तित्व का सबसे पुराना सिद्धांत हिपोक्रेट्स ने 400 BC में
प्रस्तुत किया था
भारतीय दृष्टिकोण में व्यक्तित्व का वर्गीकरण
1 सतोगुणी व्यक्तित्व- सतोगुणी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति उच्च आदर्श,श्रेष्ठमूल्य, उत्तम
स्वभाव एवं नैतिक मूल्यों से युक्त होता है|
2 रजोगुणी व्यक्ति- सतोगुण व तमोगुण के मध्य की स्थिति रजोगुण की
होती है| रजोगुणी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति में कुछ अच्छे
गुण भी होते हैं कुछ बुराइयां भी होती हैं|
3 तमोगुण व्यक्तित्व- ऐसे व्यक्ति निम्न स्वभाव के होते हैं इनमें
कामी, क्रोधी, आलसी तथा अमानवीय व्यवहार उसे परिपूर्ण होते हैं|
पाश्चात्य दृष्टिकोण
शेल्डन के अनुसार- शेल्डन ने शारीरिक संरचना के आधार पर व्यक्तित्व
को तीन भागों में बांटा है
1 गोलाकार
2 आयताकार
3 लंबाकार
2 आयताकार
3 लंबाकार
स्प्रिंग के अनुसार व्यक्तित्व का वर्गीकरण
स्प्रिंग ने व्यक्तित्व को
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के आधार पर 6 भागों
में विभाजित किया है
1 सैद्धांतिक- इस श्रेणी में कवि, लेखक, दार्शनिक आदि को सम्मिलित किया जा सकता है|
2 आर्थिक- इस श्रेणी में व्यापारी, दुकानदार, उद्योगपति आदि को सम्मिलित किया जा सकता है|
3 सामाजिक - इस श्रेणी में सहानुभूति, सहिष्णुता, दया व समाज सेवा की भावना रखने वाले व्यक्ति आते हैं|
4 राजनीतिक- इस श्रेणी में आने वाले व्यक्ति राजनीति तथा प्रशासन में ज्यादा भाग
लेते हैं|
5 सौंदर्यात्मक- इस श्रेणी में कलाकार, मूर्तिकार, साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी आदि आते हैं|
6 धार्मिक- इस श्रेणी में संत ,पुजारी, भक्त आदि आते हैं|
थार्नडाइक के अनुसार
1 सूक्ष्म विचारक
2 प्रत्यक्ष विचारक
3 स्थूल विचारक
2 प्रत्यक्ष विचारक
3 स्थूल विचारक
युंग के अनुसार
1 अंतर्मुखी
2 बहिर्मुखी
3 उभयमुखी
2 बहिर्मुखी
3 उभयमुखी
आधुनिक वर्गीकरण
1 भावुक व्यक्ति
2 कर्मशील व्यक्ति
3 विचारशील व्यक्ति
2 कर्मशील व्यक्ति
3 विचारशील व्यक्ति
व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारक
व्यक्तित्व विकास को प्रभावित
करने वाले कारकों को दो भागों में बांटा गया है|
1 जैविकीय वंशानुक्रम संबंधी कारक
2 सामाजिक व वातावरणीय कारक
2 सामाजिक व वातावरणीय कारक
1 जैविक या वंशानुक्रम संबंधी कारक
शारीरिक बनावट
स्वास्थ्य
बौद्धिक योग्यता
स्नायुमंडल
अंत स्त्रावी ग्रंथियां
स्वास्थ्य
बौद्धिक योग्यता
स्नायुमंडल
अंत स्त्रावी ग्रंथियां
2 सामाजिक व वातावरणीय कारक
परिवार
मित्र मंडली
विद्यालय
पड़ोस
भौतिक वातावरण
सांस्कृतिक वातावरण
मित्र मंडली
विद्यालय
पड़ोस
भौतिक वातावरण
सांस्कृतिक वातावरण
व्यक्तित्व मापन
की विधियां
व्यक्तित्व मापन की विधियों को चार भागों में बांटा
गया है|
1 आत्मनिष्ठ या व्यक्तिनिष्ठ विधियां
2 वस्तुनिष्ठ विधियां
2 वस्तुनिष्ठ विधियां
3 मनोविश्लेषणात्मक विधियां
4 प्रक्षेपण विधियां
आत्मनिष्ठ
या व्यक्तिनिष्ठ विधियां
इन विधियों में आत्मकथा विधि, साक्षात्कार विधि, व्यक्ति इतिहास विधि, प्रश्नावली विधि आती हैं|
1 आत्मकथा विधि- विलियम वुंट तथा टीचनर इस विधि के प्रवर्तक है|
इस विधि में परीक्षक विद्यार्थी के व्यक्तित्व का
परीक्षण करने के लिए एक शीर्षक दे देता है और उसे कहता है कि इस शीर्षक को ध्यान
में रखते हुए वह अपने जीवन से संबंधित इतिहास लिखें|
विद्यार्थी के द्वारा लिखे गए इतिहास के माध्यम से उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है|
विद्यार्थी के द्वारा लिखे गए इतिहास के माध्यम से उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है|
2 साक्षात्कार विधि- यह विधि अमेरिका से प्रारंभ हुई थी|
इस विधि में परीक्षक व परीक्षार्थी आमने-सामने होते हैं| परीक्षक परीक्षार्थी को प्रश्न पूछता है परीक्षार्थी उन प्रश्नों के उत्तर देता है| परीक्षार्थी द्वारा दिए गए उत्तर की सहायता से उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है|
इस विधि में परीक्षक व परीक्षार्थी आमने-सामने होते हैं| परीक्षक परीक्षार्थी को प्रश्न पूछता है परीक्षार्थी उन प्रश्नों के उत्तर देता है| परीक्षार्थी द्वारा दिए गए उत्तर की सहायता से उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है|
3 व्यक्ति इतिहास विधि- यह विधि टाइड मैन द्वारा दी गई थी|
इस विधि में परीक्षक परीक्षार्थी के जीवन के बारे में तथ्य एकत्रित करता है उनकी सहायता से उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है|
इस विधि में परीक्षक परीक्षार्थी के जीवन के बारे में तथ्य एकत्रित करता है उनकी सहायता से उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है|
यह विधि निदानात्मकता पर आधारित है| और सामान्य बालकों का निदान इसी विधि द्वारा किया
जाता है|
4 प्रश्नावली विधि- इस विधि को व्यक्तिगत अनुसूची भी कहा जाता है|
वुडवर्थ द्वारा सबसे पहले पर्सनल डाटा इन्वेंटरी का निर्माण किया गया| इस विधि में परीक्षक द्वारा प्रश्नों की एक सूची तैयार की जाती हैं, इन प्रश्नों का उत्तर परीक्षार्थी को ‘हां’ या ‘ना’ देना होता है|
वुडवर्थ द्वारा सबसे पहले पर्सनल डाटा इन्वेंटरी का निर्माण किया गया| इस विधि में परीक्षक द्वारा प्रश्नों की एक सूची तैयार की जाती हैं, इन प्रश्नों का उत्तर परीक्षार्थी को ‘हां’ या ‘ना’ देना होता है|
वस्तुनिष्ठ विधियां
1 निरीक्षण विधि - इस विधि को बहिर दर्शन विधि व सार्वभौमिक विधि के नाम
से भी जाना जाता है|
इस विधि के प्रवर्तक वाटसन है|
इस विधि में परीक्षार्थी के व्यवहार का भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में अध्ययन किया जाता है|
इस विधि के प्रवर्तक वाटसन है|
इस विधि में परीक्षार्थी के व्यवहार का भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में अध्ययन किया जाता है|
2 समाजमिति विधि- यह विधि जे.एल. मोरेनो द्वारा दी गई है|
इस विधि में परीक्षार्थी से संबंधित सामाजिक प्रश्न समाज के व्यक्तियों से पूछे जाते हैं|
इस विधि में परीक्षार्थी से संबंधित सामाजिक प्रश्न समाज के व्यक्तियों से पूछे जाते हैं|
3 क्रम निर्धारण मापनी- धरण मापनी विधि में क्रम निर्धारण मापनी के माध्यम से
व्यक्तियों से आंकड़े एकत्रित करके परीक्षार्थी के बारे में निष्कर्ष निकाला जाता
है|
4 शारीरिक परीक्षण विधि- इस विधि में व्यक्ति की शारीरिक जांच करके निष्कर्ष
निकाला जाता है| इस
विधि का उपयोग पुलिस, वायु सेना, थल सेना, जल सेना की शारीरिक दक्षता परीक्षा के समय किया जाता
है|
व्यक्तित्व
के प्रमुख सिद्धान्त इस प्रकार है-
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन फ्रायड ने
किया था। उनके अनुसार व्यक्तित्व के तीन अंग है-
(i) इदम् (Id)
(ii) अहम् (Ego)
(iii) परम अहम् (Super Ego)
(i) इदम् (Id)
(ii) अहम् (Ego)
(iii) परम अहम् (Super Ego)
ये तीनो घटक सुसंगठित कार्य करते है, तो व्यक्ति 'समायोजित' कहा जाता है। इनसे संघर्ष की स्थिति
होने पर व्यक्ति असमायोजित हो जाता है।
(i). इदम् (Id) : यह जन्मजात प्रकृति है। इसमें वासनाएँ
और दमित इच्छाएँ होती है। यह तत्काल सुख व संतुष्टि पाना चाहता है। यह पूर्णतः
अचेतन में कार्य करता है। यह 'पाश्विकता का प्रतीक' है।
इसे वास्तविक मानसिक सत्यता कहा जाता है|
इदम् शुद्ध, असली, मूल, उर्जा का बना होता है|
इसे उचित अनुचित का ज्ञान नहीं होता है|
इदम् शुद्ध, असली, मूल, उर्जा का बना होता है|
इसे उचित अनुचित का ज्ञान नहीं होता है|
(ii). अहम् (Ego) : यह सामाजिक मान्यताओं व परम्पराओं के
अनुरूप कार्य करने की प्रेरणा देता है। यह संस्कार, आदर्श, त्याग और बलिदान के लिए तैयार करता
है। यह 'देवत्व का प्रतीक' है।
यह वास्तविकता के नियम का पालन करता है|
यह इदम् व पराहम के मध्य संयोजन का कार्य करता है|
इदम् की स्वतंत्र एवं स्वछंद
प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करता है|
यह व्यक्ति की चेतन बुद्धि पर आधारित होता है| इसका संबंध वास्तविकता से होता
है|
यह हमारी इच्छाओं तथा
वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाए रखता है|
यह हमारे व्यवहार पर नियंत्रण रखता है|
यह हमारे व्यवहार पर नियंत्रण रखता है|
परम अहम् (Super Ego) : यह इदम् और परम अहम् के बीच संघर्ष
में मध्यस्थता करते हुए इन्हे जीवन की वास्तविकता से जोड़ता है अहम् मानवता का
प्रतीक है,
जिसका सम्बन्ध
वास्तविक जगत से है। जिसमे अहम् दृढ़ व क्रियाशील होता है, वह व्यक्ति समायोजन में सफल रहता है।
इस प्रकार व्यक्तित्व इन तीनों घटकों के मध्य 'समायोजन का परिणाम' है।
यह मुख्य रूप
से चेतन होता है|
व्यक्ति की न्याय संबंधी प्रक्रियाओं की मुख्य कार्यशाला होता है|
पछतावे की भावना, आत्मग्लानि इसी वजह से आते हैं|
इसका विकास सबसे देरी से होता है|
यह आदर्शवादी या नैतिकता के सिद्धांत पर आधारित हैं|
व्यक्ति की न्याय संबंधी प्रक्रियाओं की मुख्य कार्यशाला होता है|
पछतावे की भावना, आत्मग्लानि इसी वजह से आते हैं|
इसका विकास सबसे देरी से होता है|
यह आदर्शवादी या नैतिकता के सिद्धांत पर आधारित हैं|
फ्रायड ने सर्वप्रथम मन की तीन
अवस्थाएं बताई है-
1 चेतन मन 10%
2 अचेतन मन 90%
3 अर्धचेतन मन
2 अचेतन मन 90%
3 अर्धचेतन मन
1 चेतन मन- इसका संबंध वर्तमान से होता है| यह
वह भाग है जो तत्कालीन ज्ञान से संबंधित रहता है |
इस भाग में वह इच्छाएं, विचार एवं अनुभव होते हैं जिनका संबंध वर्तमान से|
2 अचेतन मन- अचेतन मन मन का वह भाग हैं जिस के विचारों एवं अनुभवों को पुनः चेतना में नहीं
लाया जा सकता|
अचेतन मन में दमित इच्छा, विचार व अनुभव या तो दैनिक क्रियाकलापों में
प्रकट होते हैं या सम्मोहन या अन्य प्रक्षेपी विधियों द्वारा इनको प्रकट करवाया जाता है|
अचेतन मन काम शक्ति का भंडार गृह होता है
अहम तथा पराहम द्वारा दमित इच्छा,विचार, भावनाएं, प्रेरणा, संवेग इसमें रहते हैं|
सपना अचेतन मन से ही आता है|
सपना अचेतन मन से ही आता है|
3 अर्धचेतन मन- चेतन तथा अचेतन मन के मध्य का भाग|
इसमें विषय न तो तत्काल चेतना
में रहते हैं और ना ही अचेतन में, परंतु थोड़ा प्रयास करके इस भाग के विचारों इच्छा हो
भागो को चेतन मन में लाया जा सकता है|
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक
.
वंशानुक्रम का
प्रभाव - व्यक्तित्व के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव सर्वाधिक और अनिवार्यतः
पड़ता है।
स्किनर व हैरिमैन का मत है कि- "मनुष्य का
व्यक्तित्व स्वाभाविक विकास का परिणाम नहीं है। उसे अपने माता-पिता से कुछ निश्चित
शारीरिक,
मानसिक, संवेगात्मक और व्यावसायिक शक्तियाँ
प्राप्त होती हैं।"
सामाजिक
वातावरण का प्रभाव - बालक जन्म के समय मानव-पशु होता है। उसमें सामाजिक वातावरण के
सम्पर्क से परिवर्तन होता है। वह भाषा, रहन-सहन का ढंग, खान-पान का तरीका, व्यवहार, धार्मिक व नैतिक विचार आदि समाज से
प्राप्त करता है। समाज उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता है। अतः बालकों को आदर्श
नागरिक बनाने का उत्तरदायित्व समाज का होता है।
परिवार
का प्रभाव : व्यक्तित्व के निर्माण का कार्य परिवार में आरम्भ होता है, जो समाज द्वारा पूरा किया जाता है।
परिवार में प्रेम,
सुरक्षा और
स्वतंत्रता के वातावरण से बालक में साहस, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता आदि गुणों का विकास
होता है। कठोर व्यवहार से वह कायर और असत्य भाषी बन जाता है।
सांस्कृतिक
वातावरण का प्रभाव : समाज व्यक्ति का निर्माण करता है, तो संस्कृति उसके स्वरूप को निश्चित
करती है। मनुष्य जिस संस्कृति में जन्म लेता है, उसी के अनुरूप उसका व्यक्तित्व होता
है।
विद्यालय
का प्रभाव : पाठ्यक्रम, अनुशासन , खेलकूद,
शिक्षक का
व्यवहार,
सहपाठी आदि का
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव व्यक्तित्व के विकास पर पडता है। विद्यालय में
प्रतिकूल वातावरण मिलने पर बालक कुंठित और विकृत हो जाता है।
संवेगात्मक
विकास - अनुकूल वातावरण में रहकर बालक संवेगों पर नियंत्रण रखना सीखता है।
संवेगात्मक असंतुलन की स्थिति में बालक का व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है। इसलिए
वांछित व्यक्तित्व के लिए संवेगात्मक स्थिरता को पहली प्राथमिकता दी जाती है।
मानसिक
योग्यता व रुचि का प्रभाव - व्यक्ति की जिस क्षेत्र में रुचि होती है, वह उसी में सफलता पा सकता है और सफलता
के अनुपात में ही व्यक्तित्व का विकास होता है। अधिक मानसिक योग्यता वाला बालक सहज
ही अपने व्यवहारों को समाज के आदर्शों के अनुकूल बना देता है।
शारीरिक प्रभाव - अन्तः स्त्रावी ग्रंथियाँ, नलिका विहीन ग्रंथियाँ, शारीरिक रसायन, शारीरिक रचना आदि व्यक्तित्व को
प्रभावित करते है। शरीर की दैहिक दशा, मस्तिष्क के कार्य पर प्रभाव डालने के कारण
व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। इनके अलावा बालक की
मित्र-मण्डली और पड़ोस भी उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करते
व्यक्तित्व
मापन की विधियाँ :--
(अ). प्रक्षेपण या प्रक्षेपी विधियाँ -
प्रक्षेपण विधियाँ - प्रक्षेपण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सिगमण्ड फ्रायड
ने किया, प्रक्षेपण का अर्थ होता हैं - अपनी बातों, विचारों ओर
भावनाओं आदि को स्वयं ना बताकर किसी अन्य उद्दीपक या पदार्थ
के माध्यम से अभिव्यक्त करना ।
(अ). प्रक्षेपण या प्रक्षेपी विधियाँ -
प्रक्षेपण विधियाँ - प्रक्षेपण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सिगमण्ड फ्रायड
ने किया, प्रक्षेपण का अर्थ होता हैं - अपनी बातों, विचारों ओर
भावनाओं आदि को स्वयं ना बताकर किसी अन्य उद्दीपक या पदार्थ
के माध्यम से अभिव्यक्त करना ।
प्रक्षेपण
विधियों के माध्यम से अवचेतन मन की बातों को ज्ञात किया
जाता हैं ।
जाता हैं ।
(1). प्रासंगिक अन्तबौध परीक्षण या कथा
प्रसंग परीक्षण -( T.A.T.)
(THEMATIC Apperception Test)- मॉर्गन एवं मुर्रे - 1935 ई.
(THEMATIC Apperception Test)- मॉर्गन एवं मुर्रे - 1935 ई.
कुल
कार्डों की संख्या - 30+1 =31
चित्रों
से सम्बन्धित कार्ड - 30
खाली
कार्ड - 1
इस
परीक्षण में 10
कार्डों पर पुरुषों
से सम्बन्धित चित्र तथा 10
कार्डों पर स्त्रियों से सम्बन्धित चित्र तथा बाकी 10 कार्डों पर दोनों से
सम्बन्धित चित्र बने होते हैं । व्यक्ति को चित्र दिखाकर कहानी लिखने
को कहाँ जाता हैं यह परीक्षण 14 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों
के लिए विशेष उपयोगी हैं ।
कार्डों पर स्त्रियों से सम्बन्धित चित्र तथा बाकी 10 कार्डों पर दोनों से
सम्बन्धित चित्र बने होते हैं । व्यक्ति को चित्र दिखाकर कहानी लिखने
को कहाँ जाता हैं यह परीक्षण 14 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों
के लिए विशेष उपयोगी हैं ।
(2). बाल सम प्रत्यक्ष परीक्षण - ( C.A.T.)
Children Apperception Test - ल्योपोल्ड बैलोक - 1948 ई.
Children Apperception Test - ल्योपोल्ड बैलोक - 1948 ई.
इसका
विकास किया डॉ. अननेष्ठ क्रिस ने ।
इस
परीक्षण में 10
कार्डों पर
जानवरों के चित्र बने होते हैं । बालक
को चित्र दिखाकर कहानी लिखने को कहाँ जाता हैं यह परीक्षण 3 से
11 वर्षों के बालकों के लिए विशेष उपयोगी हैं ।
को चित्र दिखाकर कहानी लिखने को कहाँ जाता हैं यह परीक्षण 3 से
11 वर्षों के बालकों के लिए विशेष उपयोगी हैं ।
(3). रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण - (I.B.T. )
Ink Blot TesT -हरमन रोर्शा - 1921 ई.
Ink Blot TesT -हरमन रोर्शा - 1921 ई.
इस
परीक्षण में 10
कार्डों पर
स्याही के धब्बे बने होते हैं । पाँच कार्ड
पर काले व सफेद तथा बाकी पाँच कार्डों पर विभिन्न रंगों के धब्बे बने
होते हैं । बालक को धब्बा दिखाकर आकृति के बारे में पूछा जाता हैं ।
पर काले व सफेद तथा बाकी पाँच कार्डों पर विभिन्न रंगों के धब्बे बने
होते हैं । बालक को धब्बा दिखाकर आकृति के बारे में पूछा जाता हैं ।
(4). वाक्य पूर्ति परीक्षण - ( S.C.T.)
SENTENCE Completion Test - निर्माण - 1930 ई.
SENTENCE Completion Test - निर्माण - 1930 ई.
इसका विकास किया हैं पाइन एवं टैण्डलर तथा इस
दिशा मे सबसे
सराहनीय कार्य रोटर्स ने किया ।
सराहनीय कार्य रोटर्स ने किया ।
इस परीक्षण में अधूरे वाक्यों को पूरा करने को
कहाँ जाता हैं । जैसे -.
(अ). मेरे माता-पिता मुझे --------------------- ।
(ब). मैं बहुत खुश होता हुँ जब ---------------- ।
(अ). मेरे माता-पिता मुझे --------------------- ।
(ब). मैं बहुत खुश होता हुँ जब ---------------- ।
(5). स्वतंत्र शब्द साहचर्य परीक्षण - ( F.W.A.T.)
Free Word Association Test - गाल्टन - 1879 ई.
इस परीक्षण के द्वारा व्यक्तित्व मापन के अलावा कई मनोवैज्ञानिक
रोगों का इलाज भी किया जाता हैं ।
Free Word Association Test - गाल्टन - 1879 ई.
इस परीक्षण के द्वारा व्यक्तित्व मापन के अलावा कई मनोवैज्ञानिक
रोगों का इलाज भी किया जाता हैं ।
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