हमारी पृथ्वी के अंदर NCERT CLASS-7
हमारी
पृथ्वी के अंदर
हमारी पृथ्वी एक गतिशील ग्रह है| इसके अंदर एवं बाहर निरंतर परिवर्तन होता
रहता है |
पृथ्वी का आंतरिक भाग
एक प्याज की तरह पृथ्वी भी एक के ऊपर एक संकेंद्री
परतों से बनी है| पृथ्वी की सतह की सबसे ऊपरी परत को पर्पटी कहते हैं | यह सबसे पतली परत होती है |
यह महाद्वीपीय संहति में 35 किलोमीटर एवं समुद्री सतह में केवल 5 किलोमीटर तक है|
महाद्वीपीय संहति मुख्य रूप से सिलिका एवं एलुमिना जैसे खनिजों से बनी है |
इसलिए इसे सियाल ( सि – सिलिका तथा एल- एलुमिना ) कहा जाता है |
महासागर की पर्पटी मुख्यतः सिलीका एवं मैग्नेशियम की बनी होती है इसलिए इसे सीमा कहते हैं |
पृथ्वी के आयतन का केवल 0.5 प्रतिशत हिस्सा ही पर्पटी है |
16% मेंटल एवं 83 प्रतिशत हिस्सा क्रोड है
पर्पटी के ठीक नीचे मेंटल होता है जो 2900
किलोमीटर की गहराई तक फैला है |
इसकी सबसे आंतरिक
परत क्रोड है, जिसकी त्रिज्या लगभग 3500
किलोमीटर है |
यह मुख्यतः निकल एवं लोहे की बनी होती है इसे निफे कहते हैं| केंद्रीय क्रोड का तापमान एवं दाब काफी
कुछ होता है |
पृथ्वी की त्रिज्या 6371
किलोमीटर है
पृथ्वी का भीतरी
हिस्सा तीन परतो (layers) से बना है । पृथ्वी
के सबसे ऊपरी परत को क्रस्ट (crust) कहते है। crust परत के नीचे मेंटल (mantle) परत होती है और उसके नीचे कोर (core) होती है
curst पृथ्वी का सबसे ऊपरी और बहरी परत होता है
जहाँ हम रहते है । यहाँ सभी प्रकार के जानवर और पेड़-पौधे होते है । समुद्र भी इसी
परत में आता है । यह परत 70 किलोमीटर तक
गहरी होती है ।
Curst परत के बाद मेंटल की परत होती है । यह 2890 किलोमीटर की मोटी परत होती है । यह पृथ्वी
की सबसे बड़ी परत होती है । यह सिलिकेट (silicate)
के पत्थरो से बनी होती है जिसमे बहुत ज़्यादा मात्रा में लोहा और
मैग्नीशियम (magnesium) नामक धातु होता है ।
बहुत ज़्यादा तापमान और दबाव की वजह से ये धातु कभी - कभी द्रव (liquid)भी बन जाते है । जब इन धातु के बड़े-बड़े plates हिलने लगते है तो पृथ्वी में भूकम्प भी आ
जाता है ।
core परत
पृथ्वी की सबसे आखिरी और सबसे अंदर की परत होती है । यह दो परतों से बनी होती है :
भीतरी कोर परत (inner core layer) और बाहरी कोर परत (outer core layer) ।
भीतरी कोर
परत 1200 किलोमीटर
मोटी होती है । यहाँ दबाव बहुत ज़्यादा होता है जिसकी वज़ह से यह परत बहुत सख्त होती
है । यहाँ का तापमान 4,982° से 7,204°
तक होता है । यह उतना की गर्म है जितना सूरज की सतह गर्म होती है । पर इतनी गर्मी से भी
वहाँ मौजूद धातु पिघलते नहीं है क्योंकि वहाँ का दबाव बहुत ज़्यादा होता है । वैज्ञानिकों
के अनुसार इस भीतरी कोर परत में लोहा और निकल (nickel ) नामक धातु हो सकता है । कुछ वैज्ञानिक
यह भी सोचते है की इस परत पर सोना या प्लैटिनम (platinum) जैसे धातु भी हो सकते है ।
बाहरी
कोर परत 3400 किलोमीटर
मोटी होती है । इस परत में धातु द्रव (liquid) बन जाते है । यह निकल (nickel), लोहा और कुछ अन्य धातुओ से बना होता है
।
शैल एवं खनिज
पृथ्वी की पर्पटी अनेक प्रकार के शैलों से बनी है
पृथ्वी की पर्पटी बनाने वाले खनिज पदार्थ के किसी भी प्राकृतिक पिंड को शैल कहते हैं |
शैल विभिन्न रंग
आकार एवं गठन की हो सकती है |
भूपर्पटी पर ठोस पिण्ड के रूप में दिखाई देने वाले
किसी भी प्राकृतिक निक्षेप को शैल कहा जाता है। इनका निर्माण दो प्रकार से होता है
1.
पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के कारण, तथा;
2.
आदि चट्टानों के रूपांतरण या विखंडन से पुनः जम जाने के कारण।
मुख्य रूप से शैल तीन प्रकार की होती है –
आग्नेय शैल, अवसादी शैल, कायांतरित शैल |
द्रवित मैग्मा ठंडा होकर ठोस हो जाता है इस प्रकार
बने शैल को आग्नेय शैल कहते हैं | इन्हें प्राथमिक शैल भी कहते हैं | आग्नेय शैल दो प्रकार की होती है : अंतर्भेदी शैल एवं बहिर्भेदी शैल |
जब द्रवित लावा पृथ्वी की सतह पर आता है यह तेजी से
ठंडा होकर ठोस बन जाता है | पर्पटी पर इस प्रकार से बने शैल को बहिर्भेदी आग्नेय शैल कहते हैं|इन की संरचना बहुत महीन दानों वाली होती
है जैसे – बेसाल्ट | दक्कन पठार बेसाल्ट शैल से ही बना है|
द्रवित मैग्मा कभी-कभी भूपर्पटी के अंदर गहराई में ही
ठंडा हो जाता है इस प्रकार बने ठोस शैलों को अंतर्भेदी आग्नेय शैल कहते हैं | धीरे-धीरे ठंडा होने के कारण यह बड़े
दानों का रुप ले लेते हैं ग्रेनाइट ऐसे ही शैल का एक उदाहरण है |
शैल लुढ़ककर चटककर तथा एक दूसरे से टकराकर
छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती है| इन छोटे कणों को अवसाद कहते हैं | यह अवसाद हवा, जल आदि के द्वारा एक स्थान से दूसरे
स्थान पर पहुंचा कर जमा कर दिए जाते हैं यह अदृढ़ अवसाद दबकर एवं कठोर होकर
शैल की परत बनाते हैं इस प्रकार की शैलों को अवसादी शैल कहते हैं | उदाहरण के लिए बलुआ पत्थर रेत के दानों
से बनता है | इन शैलों में पौधों, जानवरों एवं अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं जो
कभी इन शैलों पर रहे हैं, के जीवाश्म भी हो सकते हैं |
आग्नेय एवं अवसादी शैल उच्च ताप एवं दाब के कारण कायांतरित शैलो में परिवर्तित हो सकती है | उदाहरण के लिए चिकनी मिट्टी स्लेट में एवं चूना पत्थर संगमरमर में परिवर्तित हो जाता है|
निश्चित दशाओं में एक प्रकार की शैल चक्रीय तरीके से
एक दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं एक शैल से दूसरे शैल में परिवर्तन
होने की इस प्रक्रिया को शैल चक्रकहते हैं | द्रवित मैग्मा ठंडा होकर ठोस आग्नेय शैल
बन जाता है, यह आग्नेय शैल छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट कर एक स्थान
से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होकर अवसादी शैल का निर्माण करते हैं| ताप एवं दाब के कारण आग्नेय, अवसादी शैल कायांतरित शैल में बदल जाते
हैं |अत्यधिक
ताप एवं दाब के कारण कायांतरित शैल पुनः पिघलकर द्रवित मैग्मा बन जाती
है यह द्रवित मैग्मा उन्हें ठंडा होकर ठोस आग्नेय शैल में परिवर्तित हो जाता है|
विश्व की सबसे गहरी खान दक्षिण अफ्रीका में स्थित है
तथा इसकी गहराई लगभग 4 किलोमीटर है |
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