नए साम्राज्य नए राज्य ncert class-6


          नए साम्राज्य नए राज्य

गुप्त वंश का संस्थापक  श्रीगुप्त था

समुद्र गुप्त के बारे में उसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा संस्कृत में लिखी कविता से पता चलता है।

गुप्त शासकों की सरकारी / दरबारी भाषा  संस्कृत थी
भारत का नेपोलियन  समुद्र गुप्त  को कहा जाता था

यह कविता एक अभिलेख के रूप में इलाहाबाद में अशोक स्तम्भ पर इसकी खुदाई की गई थी।
यह एक विशेष किस्म का अभिलेख है, जिसे प्रशस्ति  कहते हैं। यह एक संस्कृत शब्द का शब्द है जिसका अर्थ प्रशंसा होता है।

वीणा बजाते हुए राजा समुद्र गुप्त को दिखाया गया है।
आर्यावर्त के नौ शासकों को हराकर समुद्र गुप्त ने उनका क्षेत्र जीता था।
प्रयाग "इलाहाबाद का पुराना नाम है
 सज्जन (अवन्ती) तथा पाटलिपुत्र (पटना) ये गुप्त शासक के महत्वपूर्ण केंद्र थे।

चन्द्र गुप्त गुप्त वंश के पहले शासक , जिन्होंने महा राजाधिराज जैसे बड़ी उपाधि धारण की।

समुद्र गुप्त के बारे हमें उनके शासकों जैसे उनके बेटे चन्द्र गुप्त द्वितीय की वंशावली से भी जानकारी प्राप्त होती है।
 समुद्र गुप्त के दरबार में कालिदास और खगोल शास्त्री आर्यभट  थे।

एरण अभिलेख का सम्बन्ध भानु गुप्त से है[R1] 

धन्वन्तरी  चिकित्सक थे  और चन्द्र गुप्त के राज दरबार में थे


राजा हर्ष वर्धन जिन्होंने करीब 1400 साल पहले शासन किया।

हर्षवर्धन पुष्यभूति राजवंश से संबंध रखता था जिसकी स्थापना नरवर्धन ने 5वीं या छठी शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में की थी। 

उनके दरबारी कवि बाणभट ने संस्कृत के उनकी जीवनी हर्षचरित लिखी ।

चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग काफी समय  तक हर्ष के दरबार में रहें।
ह्वेनसांग ने 631 ईस्वी में हर्ष के दरबार का दौरा किया था।


हर्ष अपने पिता और बड़े भाई की मृत्यु के बाद थानेसर के राजा बने ।

हर्ष का बहनोई कन्नौज  के शासक थे। जब बंगाल के शासक ने उन्हें मार डाला, तो हर्ष ने बंगाल पर आक्रमण किया और कन्नौज को भी अपने अधीन कर लिया ।

हर्ष ने जब नर्मदा नदी पार कर दक्कन की ओर बढ़ने की कोशिश की तब चालुक्य नरेश, पुलकेशिन द्वितीय ने उन्हें रोक दिया।

हर्ष को 637 ईस्वी में पुलकेशिन द्वितीय से हार का सामना करना पड़ा था।

इस काल में पल्लव और चालुक्य दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण राजवंश थे। पल्लवों का राज्य उनकी राजधानी कांचीपुरम के आस पास के क्षेत्रों से लेकर कावेरी नदी के डेल्टा तक फैला था।

चालुक्यों का राज्य कृष्णा और तुंग भद्रा नदियों के बीच स्थित था।

 चालुक्यों की राजधानी ऐहोल थी । यह एक महत्वपूर्ण व्यापारीक केंद्र थे।



 पल्लव और चालुक्य एक दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण करते थे। मुख्य रूप से राजधानियों को निशाना बनाया जाता था जो  की समृद्ध शहर थे।

पुलकेशिन द्वितीय सबसे प्रसिद्ध चालुक्य राजा था। उसके बारे में हमें उसके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित प्रशस्ति से पता चलता है।

पुलेशिन द्वितीय को अपने चाचा से यह राज्य मिला था।

पुलेकेशिन द्वितीय ने पल्लव राजा के ऊपर भी आक्रमण किया जिसे कांचीपुरम की दीवार के पीछे शरण लेनी पड़ी थी।


प्रशासन की प्राथमिक ईकाई गॉव होती थी।

हरिषेण अपने पिता की तरह मुख्य न्याय अधिकारी थे।इस काल में कुछ पद आनुवांशिक थे



चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा  पुलिकेशन II था

 
तंजौर शहर चोल राजाओं की राजधानी था

श्रीलंका पर विजय प्राप्त करने वाला प्रसिद्ध राजा राजेंद्र I था

 
तंजौर में स्थित राजराजेश्वर मंदिर का निर्माण राजराजा प्रथम ने कराया था

कृष्ण प्रथम ने राष्ट्रकूट शासकों ने पहाड़ी काटकर एलौरा के विश्वविख्यात कैलाश नाथ मंदिर का निर्माण कराया

राष्ट्रकूट साम्राज्य का संस्थापक दंतिदुर्ग था

 
चोल राजवंश ने श्रीलंका व दक्षिण पूर्व एशिया को जीता

 
विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण चालुक्यों ने कराया

 
पल्लवों का एकाश्मीय रथ  महाबलिपुरम् से  मिला है

 
होयसल की राजधानी द्वारसमुद्र थी

 
यादव सम्राटों की राजधानी  देवगिरि  थी

 
 राजराजा प्रथम ने अरब सागर में भारतीय नौसेना की सर्वोच्चता स्थापित की

 
पांड्य साम्राज्य की राजधानी मदुरै थी

 
ऐहोल का लाढखाँ मंदिर सूर्य देवता का  मंदिर है

 
माम्मलपुरम् महाबलिपुरम् समानार्थी है

 
चोलवंश  के शासक के पास एक शक्तिशाली नौ सेना थी

भगवान नटराज का प्रसिद्ध  मंदिर चिदंबरम्  में स्थित है

 
प्रशासन के क्षेत्र में चोल वंश की मुख्य देन  सुसंगठित स्थानीय स्वशासन थी

तीन मुख वाली ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्ति ऐलीफैंट गुफा में स्थित है
 
महाभारत’ का ‘भारत वेणता’ के नाम से पेरुंदेवनार ने
तमिल भाषा में अनुवाद किया

राजेंद्र चोल द्वारा बंगाल अभियान के समय बंगाल का शासक महिपाल था

 
चालुक्य विक्रम संवत्’ का शुभारंभ विक्रमाद्वित्य VI ने किया
पल्लवों की राजभाषा संस्कृत थी

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वीं सदी के राष्ट्रकूट वंश के पाँचशिला लेख कर्नाटक राज्य में मिले
 
चोल वंश राजवंश के शासक अपने शासन काल में उत्तराधिकारी नियुक्त कर देते थे

 
दक्षिणी भारत का तक्कोलम का युद्ध चोल वंश व राष्ट्रकूटों के मध्य के मध्य हुआ

 
द्रविड़ शैली के मंदिरों में ‘गोपुरम’ का  तीरण के ऊपर बने अलंकृत एवं बहुमंजिला भवन अर्थ है

चोलों को राज्य  कोरोमंडल तट व दक्कन के कुछ भाग तक फैला था

 
चोल शासकों के समय बनी प्रतिमाओं में सबसे विख्यात नटराज शिव की कांस्य प्रतिमा प्रतिमा थी

 
चोल युग  ग्रामीण सभाओं के लिए लिए प्रसिद्ध था

 
राष्ट्रकूट राजवंश का काल कन्नड़ साहित्य की उत्पत्ति का काल माना जाता है

 
होयसल स्मारक मैसूर व बैंगालूरू में है

चोलों ने वेंगी के चालुक्यों के साथ घनिष्ठ राजनीति तथा वैवाहिक संबंध स्थापित किए

 
चोल काल में निर्मित नटराज की कांस्य प्रतिमाओं में देवाकृति चतुर्भज थी

 
चोल साम्राज्य का संस्थापक विजयपाल था

 
रुद्रंवा  काकतीय राजवंश की राजवंश की प्रसिद्ध महिला शासक थी

 
राजराजा प्रथम का मूल नाम अरिमोल वर्मन था

 

 
तंजौर में स्थित राजराजेश्वर मंदिर शिव देवता का है

 
चोल युग में लोकमहादेवी ने ‘हिरण्यगर्भ’ नामक त्यौहार का आयोजन किया

 चोल युग में सोने के सिक्के  कुलंज कहलाते थे

 
चोल युग में युद्ध में विशेष पराक्रम दिखाने वाले योद्धा को क्षत्रिय शिखमणि  उपाधि दी जाती थी

पुलकेशिन द्वितीय हर्षवर्धन समकालीन था

 
काँची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण नरसिंह वर्मन II
कराया

 
होयसल वंश का अंतिम शासक बल्लाल III था
 
चोल राजाओं ने शैवधर्म को धर्म को संरक्षण प्रदान किया—

 
विचित्र चित्त’ की उपाधि पल्लव वंश के शासक  महेंद्र वर्मन II
ने धारण की
 
चोलवंश का संस्थापक विजयपाल पहले पल्लवों को सामंत था

 
शृंगार्थ दीपिका’ की रचना वेंकट माधव ने की थी

 
तैलप II ने तुंगभद्र नदी में आत्महत्या की थी




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