व्यापारी राजा और तीर्थयात्री class-6 ncert


                      व्यापारी राजा और तीर्थयात्री

दक्षिण भारत सोना मसाले खास तौर पर काली मिर्च  तथा कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था।


काली मिर्च की रोमन साम्राज्य में इतनी मांग थी कि इसे काले सोने के नाम से बुलाते थे।

दक्षिण भारत में ऐसे अनेक सिक्के प्राप्त हुए हैं जिससे यह  अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन दिनों भारत का व्यापार रोम के साथ बहुत चल रहा था


नाविक अफ्रीका या अरब के पूर्वी तट से इस  भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहुंचना  के लिए दक्षिणी पश्चिमी मानसून के साथ चलना पसंद करते थे।

नदियों के मैदानी इलाकों में कावेरी(दक्षिण की  गंगा) का मैदान सबसे उपजाऊ है।

कवि त्यागराज ने इसका वर्णन अपनी कविताओं में कई जगह  किया है

दक्षिण की प्रमुख नदी कावेरी का विस्तृत विवरण विष्णु पुराण में दिया गया है।


संगम कविताओं में मुवेन्दार की चर्चा मिलती है। यह एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ तीन मुखिया है। इसका प्रयोग तीन शासक परिवारों के मुखियाओं के लिए किया गया है। ये थे चोल, चेर और पांड्य जो करीब 2300 साल पहले दक्षिण भारत में काफी शक्तिशाली माने जाते थे।
विजयनगर साम्राज्य के 'हरिहर' और 'बुक्का' ने अपने पिता "संगम" के नाम पर संगम वंश (1336-1485 ई.) की स्थापना की थी।

इस वंश का प्रथम शासक हरिहर था

चोल बंदरगाह - पुहर या कवेरीपट्टीनम
 चोल राजधानी – उरैयूर
पांड्य राजधानी – मदुरै
पांड्य बंदरगाह – कोर्काई
चेर राजधानी – वंजी
चेर बंदरगाह - तोंडी और मुसीरी



ये मुखिया लोगों से नियमित कर के बजाए उपहारों की मांग करते थे।

अनेक संगम कवियों ने उन मुखियाओं की प्रशंसा में कविताएँ लिखी हैं जो उन्हें कीमती जवाहरात सोने ,घोड़े. हाथी रथ या सुंदर कपड़े दिया करते थे।

सातवाहनों का सबसे प्रमुख राजागौतमी पुत्र श्री सातकर्णी  था
Copyright © www.www.examrace.com



> श्री सातकर्णी के बारे में हमें उसकी मां गौतमी बालाश्री के एक अभिलेख से पता चलता है।


> दक्षिणापथ का अर्थ दक्षिण की ओर जाने वाला रास्ता का होना।

> रेशम बनाने की तकनीक का आविष्कार सबसे पहले चीन में करीब 7000 से पहले हुआ था।

इस तकनीक को उन्होंने हजारों साल तक बाकी दुनिया से छुपा कर रखा जिन रास्ते से ये लोग यात्रा करते थे वह रेशम मार्ग सिल्क रूट" के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

: कभी कभी चीन के शासक ईरान और पश्चिमी एशिया शासको को उपहार के तौर पर रेशमी कपडे भेजते थे। यहां से रेशम के बारे में जानकारी पश्चिमी की ओर फैल गई।




करीब 2000 साल पहले रोम के शासकों और उन लोगों के बीच रेशमी कपडे पहनने का फैशन बन गया

सिल्क रूट पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में सबसे प्रसिद्ध कुषाण थे। करीब 2000 साल पहले मध्य एशिया तथा पश्चिमोत्तर भारत पर इनका शासन था। पेशावार और मथुरा इनके दो मुख्य शक्तिशाली केंद्र थे। तक्षशिला अभी इनके राज्य का हिस्सा था। इनके शासन काल में ही सिल्क रूट की एक शाखा मध्य एशिया से होकर सिंधु नदी के मुहानों तक जाती थी।

रेशम मार्ग अथवा सिल्क रूट प्राचीन चीनी सभ्यता को पश्चिम तक पहुंचाया जाने का एक अहम रास्ता था, जो पूर्व और पश्चिम के बीच आर्थिक व सांस्कृतिक आदान प्रदान का सेतु के नाम से विश्वविख्यात है। रेशम मार्ग प्राचीन चीन से मध्य एशिया से हो कर दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका तक जाने वाला थल व्यापार रास्ता था। बड़ी मात्रा में चीन के रेशम और रेशम वस्त्र इसी मार्ग से पश्चिम तक पहुंचाये जाने के कारण इस मार्ग का नाम रेशम मार्ग रखा गया। पुरातत्वीय खोज से पता चला है कि रेशम मार्ग ईसा पूर्व पहली शताब्दी के चीन के हान राजवंश के समय संपन्न हुआ था, उस समय रेशम मार्ग वर्तमान के अफ़गानिस्तान, उज्जबेकस्तान, ईरान और मिस्र के अल्जेंडर नगर तक पहुंचता था और इस का एक दूसरा रास्ता पाकिस्तान तथा अफ़गानिस्तान के काबुल से हो कर फ़ारसी खाड़ी तक पहुंचता था, जो दक्षिण की दिशा में वर्तमान में कराची तक पहुंच जाता था और फिर समुद्री मार्ग से फ़ारसी खाड़ी और रोम तक पहुंच जाता था।


जहाजों द्वारा रेशम रोमन साम्राज्य तक पहुंचता था।

इस उप महाद्वीप में सबसे पहले सोने के सिक्के जारी करने वाले शासकों में कुषाण थे।

कुषाण  वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क था। उसने करीब 1900 साल पहले शासन किया।

बुद्ध चरित के रचनाकार कवि अश्व घोष कनिष्क के दरबार में रहते थे। अश्वघोष तथा अन्य बौद्ध विद्वानों ने अपनी रचनाओं को संस्कृत में लिखा

भगवान बुद्ध के निर्वाण के मात्र 100 वर्ष बाद ही बौद्धों में मतभेद उभरकर सामने आने लगे थे। वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को संघ से बाहर निकाल दिया। अलग हुए इन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को 'महासांघिक' और जिन्होंने निकाला था उन्हें 'हीनसांघिक' नाम दिया जिसने कालांतर में महायान और हीनयान का रूप धारण कर किया।

इस समय बौद्ध धर्म की एक नई विचारधारा का विकास हुआ। इसकी मुख्य विशेषता थी कि ये मूर्तियों में विश्वास करने लगे और बुद्ध की प्रतिमाएं बनने लगी।


दूसरा परिवर्तन बोधिसत्व में आया जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए एकांत वास को महत्वपूर्ण स्थान देते थे इसकी जगह वे लोगों की शिक्षा देने और मदद करने के लिए सांसारिक परिवेश में ही रहना ठीक समझने लगे।


बोधिसत्व की पूजा काफी लोकप्रिय हो गई। और पूरे मध्य एशिया ,चीन और बाद में कोरिया तथा जापान तक भी फैल गई।

बौद्ध धर्म का प्रसार पश्चिमी और दक्षिणी भारत में हुआ। जहाँ भिक्षुओं के रहने के लिए पहाड़ों में दर्जनों गुफाएं खोदी गई।

मथुरा में बुद्ध की प्रतिमा है।
कार्ले की गुफा महाराष्ट्र में स्थित है।

: थेरवाद  नामक बौद्ध  धर्म का  आरंभिक रूप श्रीलंका, म्यांमार, थाइलैंड तथा इंडोनेशिया सहित दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य भागों में भी फैला हुआ था।
थेरवाद' शब्द का अर्थ है 'बड़े-बुज़ुर्गों का कहना'। बौद्ध धर्म की इस शाखा में पालि भाषा में लिखे हुए प्राचीन त्रिपिटक धार्मिक ग्रंथों का पालन करने पर ज़ोर दिया जाता है। थेरवाद अनुयायियों का कहना है कि इस से वे बौद्ध धर्म को उसके मूल रूप में मानते हैं।

> भारत की यात्रा पर चीनी बौद्ध तीर्थयात्री  फाहियान काफी प्रसिद्ध है। वह करीब 1600 साल पहले भारत आये थे
ट्रिक–– चिनी यात्री को “फा सी हु ई”
फा – फाहीयान (399 ई.)
सी – संयुगन (518 ई.)
हु – हयेन्सांग (630ई.)
ई – ईत्सिग (7 वी सदी के अंत मे)


ह्वेन त्सांग1400 साल पहले भारत आया और उनके करीब 50 साल बाद इत्सिंग आया।

फाहियान ने अपने घर चीन वापस लौटने लिए यात्रा बंगाल से शुरू की। दो दिन के बाद उनका नाव समुद्र तूफान में फंस गया। फाहियान ने अपने सामान को फेंक दिया पर अपनी पाण्डुलिपियों और बुद्ध की मूर्तियों को नहीं फेंका।



जावा पहुँचने में उसे 90 दिन से भी ज्यादा लगे।  वे वहाँ पांच महीने के लिए रुके। इसके बाद दूसरे व्यापारी जहाज में चढ़कर वह चीन पहुँचे।

ह्वेन त्सांग भू मार्ग से “उत्तर पश्चिम और मध्य एशिया होकर" चीन वापस लौटा। उसने सोने चांदी और चंदन की बनी बुद्ध की मूर्तियों तथा 600 से भी ज्यादा पाण्डुलिपियां एकत्र की थी।

इन सब को ह्वेन त्सांग 20 घोड़ों पर लादकर ले गया। पर इसमें से 50 पाण्डुलिपियों उस समय खो गई जब सिंधु नदी पार करते उसकी नाव उलट गई। अपने जीवन का बाकी हिस्सा उसने बची हुई पाण्डुलिपियों का संस्कृत से चीनी अनुवाद करने में लगा दिया।


ह्वेन त्सांग तथा अन्य तीर्थ यात्रियों ने उस समय के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध विद्या केंद्र नालंदा बिहार में अध्ययन किया।

यहाँ पर नए आगन्तुओं से पहले द्वारपाल ही कठिन प्रश्न पूछते थे। उन्हें अंदर जाने की अनुमति तभी मिलती जब वे द्वारपाल को सही उत्तर दे पाते है। दस में सात आठ सही उत्तर नहीं दे पाते थे "

भक्ति मार्ग की चर्चा हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ भगवद् गीता में की गई है। भगवद् गीता महाभारत का एक हिस्सा है।

भक्ति मार्ग अपनाने वाले लोग आडंबर के साथ पूजा पाठ करने के बजाए ईश्वर के प्रति लगन और व्यक्तिगत पूजा पर जोर देते थे।

भक्ति  भज शब्द से बना है जिसका अर्थ विभाजित करना या हिस्सेदारी होता है

हिन्दू शब्द इंडिया शब्द की तरह ही सिंधु या इण्डस से  निकला है। यह शब्द अरबों तथा ईरानियों द्वारा उन लोगों के लिए उपयोग किया जाता था , जो सिंधु नदी के पूर्व में रहते थे।

करीब 2000 साल पहले पश्चिमी एशिया में ईसाई धर्म का उदय हुआ। ईसा मसीह का जन्म

बेथलेहम में हुआ, जो उस समय बेथलेहम रोमन साम्राज्य का हिस्सा था।

केरल के ईसाइयों को सरियाई ईसाई कहा जाता है क्योंकि संभवतः: वे पश्चिम एशिया से आए थे


Comments

Popular posts from this blog

कोहलर का सूझ अथवा अंतर्दृष्टि का सिद्धांत

खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर NCERT CLASS-6