जेरोम ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त (Jerome Bruner’s Cognitive Development Theory)

   निवासी – अमेरिका

  ब्रूनर पर जीन पियाजे का प्रभाव था

ब्रूनर ने संज्ञानात्मक विकास  का मॉडल  प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, यह

 वह मॉडल है जिसके द्वारा मनुष्य अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित

 करता है। ब्रूनर ने अपना संज्ञान सम्बन्धी अध्ययन सर्वप्रथम प्रौढ़ों पर

 किया, तत्पश्चात् विद्यालय जाने वाले बालकों पर, फिर तीन साल के 

बालकों पर और फिर नवजात शिशु पर किया।

ब्रूनर ने मुख्य रूप से दो बातों पर ध्यान दिया। पहला, यह कि शिशु अपनी

 अनुभूतियों को मानसिक रूप से किस प्रकार व्यक्त करता है और दूसरा

 यह कि शैशवावस्था और बाल्यावस्था में बालक चिन्तन कैसे करता है।

ब्रूनर के अनुसार शिशु अपनी मानसिक अनुभूतियों को तीन तरीकों से 

अभिव्यक्त करते हैं-


1 सक्रिय अवस्था  या विधि निर्माण अवस्था-इस अवस्था में बालक

 अशब्दिक क्रियाओ के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता है जैसे चलना दौड़ना 

किसी वस्तु को पकड़ना इशारे करना संकेत करना आदि





2 प्रतिबिम्बात्मक अवस्था  या मूर्त अवस्था- इस अवस्था में बालक विषय 

वस्तु के प्रत्यक्ष संपर्क में आ कर के ज्ञान प्राप्त करता है अर्थात ऐसे ज्ञान 

का आधार प्रत्यक्षीकरण होता है

3 प्रतीकात्मक अवस्था- इस अवस्था में बालक अपने पूर्व अनुभव एवं पूर्व

ज्ञान को अधिक महत्व देता है और अपने अनुभवों को अपने विचारों के 

माध्यम से अभिव्यक्त करना भी शुरू करता देता है बालक अपने विचारों

 को दूसरों को समझा सकता है तथा दूसरों के विचारों को स्वयं समझ भी 

सकता है



विकास की अवस्थाएं
आयु अवधि
विशेषताएं
सक्रिय अवस्था
जन्म से 3 वर्ष
मांसपेशिय गतिविधिया करना, सक्रिय रहकर वातावरण से अन्तः क्रिया करना
प्रतिबिम्बात्मक अवस्था
3 से 11 वर्ष
प्रत्यक्षीकरण व् स्वयं करके सीखना , दृश्य स्मृति का विकास
प्रतीकात्मक अवस्था
11 वर्ष से ऊपर
प्राप्त अनुभवों को शब्दों के माध्यम से प्रकट करना, अमूर्त चिंतन करना, उच्च-स्तरीय विमर्शी चिंतन करना


ब्रूनर ने सीखने की प्रक्रिया व कक्षा शिक्षण का अध्ययन किया उस अध्ययन में जानकारी प्राप्त हुई-
सीखने सिखाने की प्रक्रिया में अन्तर्दर्शी चिन्तन अधिक उपयोगी है।
हर विषय की संरचना होती है, उनके मूल समप्रत्यय, नियम व विधियां होती है, उसको सीखे बिना विषय का ज्ञान सम्भव नहीं।
जो ज्ञान स्वयं खोज द्वारा प्राप्त किया जाता है, वो ही उसके लिए सार्थक व टिकाऊ होता है।
ब्रूनर के अनुसार जो कुछ पढ़ाया सिखाया जाये उसका व्यक्ति व समाज दोनों से सम्बन्ध हो। इस प्रकार ब्रूनर ने दो प्रकार की सम्बद्धता पर बल दिया। (1) व्यक्तिगत सम्बद्धता (2) सामाजिक सम्बद्धता)
ब्रूनर के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार करके बच्चों को सीखने की लिए तत्पर करें।
सीखने की परिस्थिति में बच्चे सक्रिय रूप से भाग लें।
ब्रूनर के सिद्धान्त की विशेषताएं
1 इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षा बालक में व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों गुणों का विकास करती है
2 ब्रूनर का सिद्धान्त बालक के पूर्व अनुभवों तथा नये विषय वस्तु में समन्वय के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने पर बल देता है।
3 यह सिद्धान्त सीखने में पुनर्बलन, पुरस्कार व दण्ड आदि पर बल देता है।
4 विषय वस्तु की संरचना ऐसी हो, कि बच्चे सुगमता व सरलता से सीख सकें।
ब्रूनर के सिद्धान्त का शैक्षिक महत्व

ब्रूनर ने मानसिक अवस्थाओं का वर्णन किया। इन अवस्थाओं के अनुसार शिक्षण विधियों व प्रविधियों का प्रयोग करना चाहिये।
इनकी अन्वेषण विधि द्वारा छात्रों में समस्या समाधान की क्षमता का विकास किया जा सकता है।
ब्रूनर ने सम्प्रत्यय को समझने पर बल दिया अतः शिक्षक को विषय ठीक से समझाने चाहिये। इसके ज्ञान से छात्र पर्यावरण को समझ कर उसका उपयोग कर सकता है।
ब्रूनर के संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए।

इन्होंने वर्तमान अनुभवों को पूर्व ज्ञान एवं अनुभव से जोड़ने पर बल दिया। इससे छात्रों के ज्ञान को समृद्ध एवं स्थाई बनाया जा सकता है।
ब्रूनर की संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं के अनुसार शिक्षक, अपने नियोजन क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन प्रक्रिया में संशोधन कर बालकों के बौद्धिक विकास में सहायक हो सकते हैं।






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